राष्ट्र के नाम संदेश

#प्रधानमंत्री के उदबोधन या राष्ट्र के नाम सन्देश में भूख से पीड़ित लाखों-करोड़ों बच्चों और वयस्क लोगों के लिये कोई कार्ययोजना ही नहीं थी। वे सिर्फ लॉक डाउन की ही बात करते रहे। जबकि लॉक डाउन सिर्फ मध्यम वर्ग, उच्च मध्यम वर्ग तथा उच्च वर्ग में ही सफल है। 


40-45 करोड़ भूखे-प्यासे गरीब लोग क्या लॉक डाउन में तड़फते हुए मर जायेंगे? यूरोप और इंग्लैंड में किसी भी देश की जनसंख्या 10 करोड़ से अधिक नहीं है और अमेरिका जैसे महा शक्तिशाली देश की जनसंख्या भी 33-34 करोड़ ही है। भारत की 136 करोड़ की आबादी में 80-85 करोड़ निर्धन हैं। इनमें भी 40-45 करोड़ अति निर्धन हैं। उनके लिये सभी राज्य सरकारों ने अभी तक जो कुछ भी किया है वह 'ऊंट के मुंह में जीरा' के ही समान है। 


प्रधानमंत्री से यह अपेक्षा थी कि वे लॉक डाउन की अवधि तो बढ़ाएंगे ही लेकिन उन करोड़ों लोगों के लिये क्या कर रहे हैं जो रोज कुंआ खोदते थे और पेट भरते थे। अब न तो उनके पास पैसा है, न रोजगार है और न भोजन है। यह बहुत ही भयावह और दारुण स्थिति है। इसलिये जब कोरोना की महामारी थमेगी और वास्तविक स्थिति सामने आएगी तो पता चलेगा कि जितने लोग कोरोना से नहीं मरे उससे कहीं अधिक भूख और इलाज के अभाव में गम्भीर बीमारियों से मर गये।


Sangeeta singh